यह कैसी घड़ी आई है,हर किसी की जान पे बात आई है।
हर तरफ खामोशी और सन्नाटा है,क्या सोच रहा कुदरत का निर्माता है,कुछ इस तरह लोगों को लाचार बना दिया,कि घर में मनुष्य, और प्राणी को राजा बना दिया।
कुछ इस तरह लिया है प्रकृति तूने आकार,की भान हुआ मनुष्य को,हो गया है वह मोह से लाचार।
अब ना रहा मोह किसी का,अब ना रहा घमंड किसी का,बस रही तो सिर्फ आशा,जो बने जीवन सहारा किसी का ।
हे मानव अब समझ जा तेरा बचपना,और खोल दे अपनी आंखें,यह तो सिर्फ शुरुआत है प्रकृति की,हो रही है शुरुआत तेरे अंत की।
बना ले अपने आपको सर्व बुद्धिमान,कर ले अपने समय का सदुपयोग,अरे यही तो समय है,साबित कर दे अपनी बुद्धि
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